Thought #1 - जीवन की अजीब सच्चाई: अपनेपन और अकेलेपन की जंग

February 20, 2021 | Mridun Gupta

कभी ना सोचा था अपनों को छोड़कर, कभी पराये लोगों के संग रहना पड़ेगा। ना सोचा था खुशियों के बाग को उजड़कर, दुखों की दुकान खोलनी पड़ेगी। ना सोचा था कभी इतना अकेला रह जाऊंगा कि अपने आप से ही बातें करना भूल जाऊंगा। ना था सोचा मरते समय अकेले ही जाना होगा।

ना अब सोचा है, ना अब सोचेंगे किसके साथ रहना है और किसके साथ मरना। अकेले रहकर भी दुखी हैं, प्रिय लोगों के संग भी गम ही मिला है। वे तो अपने थे जिन्होंने हमें खुशियों से भरा आंगन दिया था। परमात्मा चाहे तो भी ना हमें प्रिय लोगों के दिए गम से बचा सकेगा। अब तो हम केवल अपनों के साथ ही चलेंगे।

हर बार माँ ने समझाया था, अब कोई अपना नहीं रहा इसलिए सभी गमों ने ही हमें रुलाया। अब तो सोच लिया है, अकेले ही रहना है, अकेले ही मरना है, अगर कोई अपना रास्ते में नहीं मिला। इस दुनिया में क्या है तरीका, कुछ लोग अमीर हैं, कुछ गरीब भी हैं, पर किसी के पास भी सुखी जिंदगी नहीं है।